रसखान का जीवन परिचय: एक महान कृष्ण भक्त कवि
रसखान, हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के प्रमुख कृष्ण भक्त कवि थे। उनका पूरा नाम सैयद इब्राहीम था। माना जाता है कि उनका जन्म 1558 ईस्वी के आसपास दिल्ली के एक समृद्ध पठान परिवार में हुआ था। मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद, वे जीवन भर भगवान कृष्ण की भक्ति में डूबे रहे।
कहा जाता है कि उनकी कृष्ण भक्ति को देखकर गोसाईं विट्ठलनाथ जी ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था। बचपन से ही वे प्रेमी स्वभाव के थे, जो बाद में अलौकिक प्रेम में परिवर्तित हो गया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने श्रीनाथजी के मंदिर में भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन किए, जिसके बाद उन्होंने अपना जीवन ब्रजभूमि में ही बिताने का संकल्प लिया।
रसखान की प्रमुख कृतियाँ (रचनाएँ)
रसखान की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:
1. प्रेमवाटिका:
यह एक महत्वपूर्ण काव्य रचना है जिसमें केवल 25 दोहे संकलित हैं। इस ग्रंथ में प्रेम के विभिन्न रूपों को अत्यंत सहजता और गहराई से प्रस्तुत किया गया है। प्रेमवाटिका में प्रेम की व्याख्या, उसके गुण, प्रभाव, और सर्वोच्चता का विशद वर्णन मिलता है।
2. सुजान रसखान:
यह संग्रह 139 छंदों (दोहा, सोरठा, कवित्त, सवैया) का अद्भुत संकलन है। यह कृति भक्तों के हृदय को स्पर्श करने वाली है। इसमें कृष्ण प्रेम की गहन अनुभूति व्यक्त की गई है।
कुछ विद्वानों के अनुसार, ‘रसखान-शतक’ और ‘राग-रत्नाकर’ भी उनकी रचनाएँ मानी जाती हैं, लेकिन ये ग्रंथ अब उपलब्ध नहीं हैं।
रसखान की काव्यगत विशेषताएँ
रसखान का काव्य पूरी तरह से भगवान कृष्ण और उनके जीवन से जुड़ा हुआ है। वे भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं, यौवन लीलाओं, उनकी वेशभूषा, मुरली, गोपिकाओं और ब्रजभूमि के प्रति अत्यधिक अनुरक्त थे। उनके काव्य में भावनाओं की गहनता, भक्ति का उत्कर्ष, और प्रेम की मधुरता देखने को मिलती है।
1. कृष्ण प्रेम और भक्ति:
रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति अद्वितीय प्रेम और भक्ति को व्यक्त किया है। वे मानते थे कि वही जीवन सफल है जो कृष्ण की भक्ति में लीन हो। उनके काव्य में प्रेम अत्यंत पवित्र, निश्छल और समर्पण से युक्त है।
2. श्रृंगार रस और भक्ति रस का समन्वय:
उनके काव्य में श्रृंगार रस के साथ-साथ गहन भक्ति भाव देखने को मिलता है। उनके श्रृंगारिक चित्रण में मधुरता के साथ गरिमा भी विद्यमान है। वे कृष्ण और गोपियों के प्रेम प्रसंगों को भक्ति की दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं।
3. भाषा और शैली:
रसखान की भाषा ब्रजभाषा है, जो अत्यंत सरल, सरस और सजीव है। उन्होंने अपने काव्य में मुहावरों और लोक प्रचलित शब्दों का कुशल प्रयोग किया है, जिससे उनकी रचनाएँ अधिक प्रवाहमयी और प्रभावशाली बन गई हैं। उन्होंने दोहा, कवित्त और सवैया छंदों का उत्कृष्ट प्रयोग किया है।
रसखान का साहित्यिक योगदान
हिन्दी साहित्य में रसखान का विशेष स्थान है। वे अरबी और फारसी के विद्वान थे, साथ ही वे काव्यशास्त्र और पिंगलशास्त्र में भी पारंगत थे।
उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अपनी भक्ति-भावना को साहित्य के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया। वे श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनका काव्य इसी प्रेम और भक्ति की भावना से ओतप्रोत था।
1. कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम:
रसखान ने अपने जीवन का हर क्षण कृष्ण भक्ति में व्यतीत किया। उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल और यौवन लीलाओं का हृदयस्पर्शी चित्रण किया। उनका काव्य संयोग और वियोग दोनों भावनाओं का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।
2. ब्रजभूमि के प्रति प्रेम:
रसखान का ब्रजभूमि के प्रति गहरा अनुराग था। उन्होंने ब्रज के कण-कण में भगवान कृष्ण को अनुभव किया और अपने काव्य में इस प्रेम को अत्यंत प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया।
निष्कर्ष
रसखान हिन्दी साहित्य के उन महान कवियों में से एक हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कृष्ण भक्ति को अनमोल स्थान प्रदान किया। उनकी कृतियाँ आज भी कृष्ण भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी भक्ति, प्रेम और काव्य सौंदर्य हिन्दी साहित्य को अमर बना देता है।
उनकी भाषा प्रवाहमयी, भावनाओं से ओतप्रोत और अत्यंत सरस है। उनकी कविताओं में जो माधुर्य और भक्ति भाव देखने को मिलता है, वह उन्हें भक्तिकाल के अन्य कवियों से अलग स्थान प्रदान करता है।
प्र.1. अनुमान के आधार पर रसखान का जन्म क्या है ?
उत्तर : अनुमान के आधार पर रसखान का जन्म १५३३ ई. है ।
प्र.2. रसखान का उपनाम क्या था ?
उत्तर : रसखान का उपनाम सैय्यद इब्राहीम था ।
प्र.3. रसखान भक्तिकालीन किस धारा के कवि हैं ?
उत्तर : रसखान भक्तिकालीन सगुण धारा के कृष्ण के प्रवर्तक कवि हैं।
प्र.4. रसखान को किस मुगल सम्राट से जागीर प्राप्त हुई ?
उत्तर : रसखान को हुमायूँ मुगल सम्राट से जागीर प्राप्त हुई ।