अपभ्रंश काव्य परंपरा और अपभ्रंश काव्य की वस्तुगत, भावगत और शिल्पगत विशेषताएँ

अपभ्रंश काव्य परंपरा और अपभ्रंश काव्य की वस्तुगत, भावगत और शिल्पगत विशेषताएँ

अपभ्रंश काव्य साहित्य के अन्तर्गत निम्नलिखित साहित्य का समावेश है. जैन साहित्य जिसमें मतों में धार्मिक, ऐच्छिक रूप हैं तथा उनमें प्रबंध काव्य एवं मुक्तक काव्य की रचना हुई है उसके भी दो भेद रहे (1) रहस्यात्मक, (2) उपदेशात्मक । जैनत्तर साहित्य जिसमें (1) बौद्ध साहित्य, (2) नाथ साहित्य, (3) बौद्धेत्तर साहित्य हैं। प्रथम दो…

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रासो साहित्य का परिचय देते हुए पृथ्वीराज रासो की प्रमाणिकता सिद्ध कीजिये ।

रासो साहित्य का परिचय देते हुए पृथ्वीराज रासो की प्रमाणिकता सिद्ध कीजिये ।

साहित्य का निर्माण परम्पराओं से होता है । कोई भी कवि किसी न किसी परम्परा का सहारा लेकर काव्य रचना में प्रवृत्त होता है । हिन्दी साहित्य में प्रत्येक युग किसी न किसी परम्परा का सहारा लेकर निर्मित हुआ है । रासो काव्य- परम्परा भी इसका अपवाद नहीं हैं। रासो की परम्परायें हिन्दी साहित्य के…

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प्रारंभिक हिन्दी कहानियों का विकास प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ

प्रारंभिक हिन्दी कहानियों का विकास: प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ

प्रारम्भिक हिन्दी कहानियों का विवरण हिन्दी गद्य में कहानी शीर्षक से प्रकाशित होने वाली सबसे पहली रचना रानी केतकी की कहानी है, जो 1803 ई. में इंशा अल्ला खाँ द्वारा लिखी गई। आधुनिक ढंगा कानी केतकी की आरम्भ आचार्य शुक्ल ने सरस्वती पत्रिका के प्रकाशन-काल से माना है। उन्हकहानियों का कहानियों का विवरण इस प्रकार…

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सिद्ध तथा नाथ साहित्य की विशेषताओं को प्रतिपादित करते हुए उनके प्रदेयों का आकलन कीजिए ।

दसवीं शताब्दी में पूर्व ही बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का प्रचार भारत के पूर्वी भागों में बहुत अधिक था। ये बिहार आसाम तक फैले थे और चौरासी सिद्ध इन्हीं में से हुए हैं, जिनका चमत्कारों से जनता को अब तक है। ये बौद्ध सिद्ध तान्त्रिक होते थे और अपने अलौकिक चमत्कारों से जनता को…

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हिन्दी उपन्यास - प्रेमचन्द और उनका युग

हिन्दी उपन्यास – प्रेमचन्द और उनका युग

उपन्यास की पूर्व-परम्परा ‘उपन्यास’ गद्य का नव-विकसित रूप है जिसमें कथा-वस्तु, बरित्र-चित्रण, संवाद आदि के तत्त्वों के माध्यम से यथार्थ और कल्पना मिश्रित कहानी आकर्षक शैली में प्रस्तुत की जाती है। उपन्यास का उद्भव यूरोप में रोमांटिक कथा साहित्य में हुआ जो मूलतः भारतीय प्रेमाख्यानों से प्रेरित था। हिन्दी में उपन्यास आविर्भाव 19वीं शताब्दी के…

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हिन्दी साहित्य के इतिहास की लेखन पद्धतियाँ और हिन्दी साहित्य के इतिहासकार ।

वास्तव में 19वीं शताब्दी को हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन का सूत्रपात माना जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा की शुरुआत भी गार्सी दातासी ने की जोकि एक फ्रेंच विद्वान् थे। उनकी इस लेखन परम्परा की शुरुआत उनके द्वारा रचित ग्रन्थ ‘इस्त्वार द ला लिटरेत्यूर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी’ से हुई। यह दो भागों…

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हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन और साहित्य के विकास के प्रमुख बिन्दु

हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन और साहित्य के विकास के प्रमुख बिन्दु

साहित्य का इतिहास दर्शन इतिहास के समानार्थक ‘हिस्ट्री’ (History) शब्द का प्रयोग यूनानी विद्वान् हेरोडोटस (456-445 ई.पू.) ने किया। हेरोडोटस महोदय ने इतिहास के चार प्रमुख लक्षण निर्धारित करते हुए बताया कि 1. इतिहास एक वैज्ञानिक विधा है अर्थात् इसकी पद्धति आलोचनात्मक होती है। 2. यह मानव जाति से सम्बन्धित होता है, अतः यह एक…

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छायावादी काव्य की विशेषताएँ || chayavaad kavya ki viseshtaayen

छायावादी काव्य की विशेषताएँ || chayavaad kavya ki viseshtaayen

आत्म अभिव्यक्ति छायावादी कविता में कवियों ने अपने व्यक्तिगत जीवन के निजी प्रसंगों को खोजने का प्रयास किया। अपनी भावनाओं की खुलकर अभिव्यक्ति इन्होंने की। सुख-दुःख से परिपूर्ण कविताएँ खूब लिखी गई। जयशंकर प्रसाद कृत आँसू व पन्त कृत उच्छवास इसका उदाहरण है पन्त जी अपनी प्रियतमा को पूजने की बात करते हैं विधुर उर…

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रीतिकाल : रीतिकालीन काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

रीतिकाल : रीतिकालीन काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

‘रीति’ शब्द का प्रयोग निश्चित प्रणाली, ढंग और नियम के अर्थ में होता है । अतः रीतिकाल में हमारा अभिप्राय हिन्दी-साहित्य के उस काल से है, जिसमें निश्चित प्रणाली के अनुसार काव्य-कला का विकास हुआ।

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महावीर प्रसाद द्विवेदी द्विवेदी युग और द्विवेदीयुगीन काव्यगत विशेषताएँ

महावीर प्रसाद द्विवेदी : द्विवेदी युग और द्विवेदीयुगीन काव्यगत विशेषताएँ

महावीर प्रसाद द्विवेदी और द्विवेदी युग द्विवेदी युग के प्रवर्तक कवि महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1864 ई. में रायबरेली के दौलतपुर नामक ग्राम में हुआ। इन्हीं के नाम पर द्विवेदी युग का नामकरण हुआ। 1903 ई. में ये सरस्वती पत्रिका के सम्पादक बने, 1920 ई. तक इस पत्रिका के सम्पादक बने रहे। गद्य लेखन…

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