रीतिकाल या श्रृंगारकाल
‘रीति’ शब्द का प्रयोग निश्चित प्रणाली, ढंग और नियम के अर्थ में होता है । अतः रीतिकाल में हमारा अभिप्राय हिन्दी-साहित्य के उस काल से है, जिसमें निश्चित प्रणाली के अनुसार काव्य-कला का विकास हुआ। भक्तिकाल के … Read More
उपन्यास की पूर्व-परम्परा ‘उपन्यास’ गद्य का नव-विकसित रूप है जिसमें कथा-वस्तु, बरित्र-चित्रण, संवाद आदि के तत्त्वों के माध्यम से यथार्थ और कल्पना मिश्रित कहानी आकर्षक शैली में प्रस्तुत की जाती है। उपन्यास का उद्भव यूरोप में रोमांटिक कथा साहित्य में … Read More
वास्तव में 19वीं शताब्दी को हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन का सूत्रपात माना जाता है।
हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा की शुरुआत भी गार्सी दातासी ने की जोकि एक फ्रेंच विद्वान् थे। उनकी इस लेखन परम्परा की शुरुआत … Read More
इतिहास के समानार्थक ‘हिस्ट्री’ (History) शब्द का प्रयोग यूनानी विद्वान् हेरोडोटस (456-445 ई.पू.) ने किया। हेरोडोटस महोदय ने इतिहास के चार प्रमुख लक्षण निर्धारित करते हुए बताया कि
1. इतिहास एक वैज्ञानिक विधा है अर्थात् इसकी … Read More
द्विवेदी युग के प्रवर्तक कवि महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1864 ई. में रायबरेली के दौलतपुर नामक ग्राम में हुआ। इन्हीं के नाम पर द्विवेदी युग का नामकरण हुआ। 1903 ई. में ये सरस्वती … Read More
द्विवेदी युग का नामकरण प्रसिद्ध सर्वस्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर हुआ। इसे जागरण सुधार काल भी कहा जाता है। भारतीय इतिहास में यह काल ब्रिटिश शासन के दमनचक्र व कूटनीति का काल है। … Read More
भारतेन्दु युगीन कवियों का काव्यफलक अत्यन्त विस्तृत है उनकी रचना प्रवृत्तियाँ एक ओर भक्तिकाल और रीतिकाल से अनुबद्ध हैं, तो दूसरी ओर समकालीन परिवेश के प्रति जागरूकता का भी अभाव नहीं … Read More
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के रचनाकाल को दृष्टि में रखकर संवत् 1925 से 1950 की अवधि को नई धारा या प्रथम उत्थान की संज्ञा दी।
भारतीय इतिहास का आधुनिक काल 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है। साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से होता है। आचार्य शुक्ल ने आधुनिक काल की समय-सीमा 1843 ई. से 1923 तक मानी है। … Read More