Home भक्तिकाल मलिक मोहम्मद जायसी का साहित्यिक परिचय दीजिए

मलिक मोहम्मद जायसी का साहित्यिक परिचय दीजिए

by Sushant Sunyani
मलिक मोहम्मद जायसी का साहित्यिक परिचय दीजिए

हिन्दी साहित्य में प्रेममार्गी कवियों की चर्चा हो और मलिक मोहम्मद जायसी का नाम न आए, यह संभव नहीं। वे सूफी परंपरा के एक प्रतिष्ठित कवि थे, जिन्हें इस काव्य धारा का प्रतिनिधि कवि माना जाता है। उनका जन्म 1492 ईस्वी के आसपास हुआ था, और वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के निवासी थे, जिससे उन्हें “जायसी” कहा जाने लगा।

जायसी का जीवन संघर्षों से भरा था। चेचक के कारण वे एक आँख की दृष्टि खो बैठे और उनका चेहरा अत्यंत कुरूप हो गया, लेकिन उनके हृदय में भावनाओं की अविरल धारा प्रवाहित होती रही। अमेठी के राजा उनके प्रति विशेष सम्मान रखते थे, और आज भी उनके सम्मान में वहाँ के किले में उनकी समाधि स्थित है।


मलिक मोहम्मद जायसी की प्रमुख रचनाएँ

मलिक मोहम्मद जायसी ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से प्रमुख हैं:

1. पद्मावत

यह उनका सबसे प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है, जिसने उन्हें हिन्दी साहित्य में अमर बना दिया। यह ग्रंथ प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।

2. अखरावट

इसमें सिद्धांतों पर आधारित चौपाइयाँ शामिल हैं, जो गहरी दार्शनिकता और आध्यात्मिकता से ओतप्रोत हैं।

3. आखिरी कलाम

इस ग्रंथ में प्रलय और जीवन के अंतिम सत्य का वर्णन किया गया है, जो सूफी दर्शन का एक अद्भुत उदाहरण है।


‘पद्मावत’ की काव्यगत विशेषताएँ

‘पद्मावत’ एक उत्कृष्ट प्रेमगाथा है, जिसमें राजा रत्नसेन और पद्मावती की प्रेम कहानी का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है। इस कथा में एक तोता हीरामन भी है, जो प्रेमी-प्रेमिका को मिलाने में मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। यह तोता प्रतीकात्मक रूप से गुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है।

1. आध्यात्मिक प्रेम की परिकल्पना

जायसी ने प्रेम को केवल सांसारिक नहीं, बल्कि ईश्वर प्राप्ति का माध्यम माना है। पद्मावती को ईश्वर की प्राप्ति हेतु “विशुद्ध प्रज्ञा” का प्रतीक माना गया है।

2. भावनाओं की गहनता

‘पद्मावत’ में प्रेम केवल व्यक्तिगत न होकर व्यापक रूप से सम्पूर्ण ब्रह्मांड तक फैलता है। बिरहाकुल प्रेमी-प्रेमिका के साथ-साथ सम्पूर्ण चराचर जगत् उनकी वेदना में सहभागी बन जाता है।

3. कोमलता और विरह का व्यापक स्वरूप

जायसी का विरह-वर्णन केवल शरीरगत पीड़ा तक सीमित नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचता है। उनके शब्दों में अत्युक्ति होते हुए भी वे हास्यास्पद नहीं लगते, बल्कि हृदय को गहरे तक स्पर्श करते हैं।

4. ऐतिहासिकता और कल्पना का समन्वय

‘पद्मावत’ का आधार ऐतिहासिक घटनाएँ हैं, लेकिन जायसी की कल्पना ने इसे एक अद्वितीय रूप प्रदान किया है। कथा का पूर्वार्द्ध लोककथाओं से प्रेरित है, जबकि उत्तरार्द्ध में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर विशेष बल दिया गया है।

5. आध्यात्मिकता और भक्ति का समावेश

जायसी ने प्रेम की राह को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया है। ‘पद्मावत’ में भौतिक कठिनाइयों के माध्यम से आध्यात्मिक साधना की कठिनाइयों का प्रतीकात्मक वर्णन मिलता है, जो इसे अन्य काव्यों से अलग करता है।

मलिक मोहम्मद जायसी की भाषा शैली

इसकी रचना फारसी की मसनवी पद्धति के अनुसार हुई है। काव्य का बाह्य कलेवर ही विदेशी है पर उसमें निहित काव्यांगों का निरूपण सर्वथा भारतीय है। इसमें श्रृंगार प्रमुख है। हास्य को छोड़कर अन्य रसों का प्रयोग ‘पद्मावत’ में हुआ है। आपके काव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों का सफलतापूर्वक निर्वाह हुआ है। मलिक मोहम्मद जायसी के भाषा अवधी है। पूरी कथा समासोक्ति से युक्त है जिसमें कवि ने प्रेममार्ग की कठिनाइयों और सिद्धि के स्वरूप का वर्णन किया है। कवि ग्रन्थ की समाप्ति पर ) लिखता है :—

तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघलबुध पदमिनि चीन्हा । 

गुरु हुआ जेइ पंथ देखावा । गुरु बिनु जगत को निर्गुण पावा ॥ 

  रूप वर्णन की शक्ति भी जायसी में अपूर्व है। पद्मिनी का सौन्दर्य वर्णन पाठक को लोकोत्तर भावना में मग्न करने वाला है :—

सरवर तौर पद्मिनी आई खोय छोरि केस मुकुलाई | 

ससि मुख, अंग मलयगिरि बासा नागिनि झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥ 

ओनई घटा परी जग छाँहा ससि के सरन लीन्ह जनु राहा ॥ 

भूलि चकोर दीठि मुख लावा मेघ घटा मुँह चंद देखावा ॥ 

पद्मावत में कंवि ने लौकिक तत्वों के आधार पर आध्यात्मिक प्रेम और तजन्य विरह का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है। पद्मावती उस अनन्त रूपमयी ईश्वरीय सत्ता का प्रतीक है जिसके सौन्दर्य सुषमा का चित्रण कर कवि अपनी गहरी भावुकता का परिचय देता है ।

जायसी भाव-चित्रण के साथ-साथ दृश्य चित्रण में भी पटु हैं। दृश्यों के मनोहर चित्रांकन में उन्होंने भारतीय भावधारा और परिपाटी का ध्यान रखा है। जायसी में प्रेम और संतीत्व का सुन्दर योग मूर्तिमान हो उठा है। पद्मावत में स्तुति, नख-शिख, षट्ऋतु, बारहमासा, ज्योतिष, राग-रागिनी, प्रेम, युद्ध, दुःख, सुख, राजनीति, प्रेमालाप, साधना मार्ग और सिद्धि के स्वरूप का वर्णन किया गया है। रसों का निर्वाह संकुल है। उदाहरण

उअत सूर जस देखिय, चाँद छप तेहि धूप 

ऐसे सबै जाहिं छपि, पद्मावति के रूप ।। 

मुनि रवि राव रतन भा राता । पण्डित फेरि उहैं कह बाता ।  

तै सुरंग मूरति वह कही । चित मुँह लागि चित्र होइ रही ॥  

जनु होई सुरुज, आइ मन बसी । सब घट पूरि हिये पर गसी ।  

अब हौं सुरुज, चाँद बहु छाया । जल बिनु मीन रकत बिनु काया ॥ 

जायसी का रहस्यवाद

जायसी के काब्य की सबसे बड़ी विशेषता उनकी रहस्यवादी प्रवृत्ति है। जायसी के रहस्यवाद का आदार वेदान्त की अद्वैत भावना है, फिर भी उसमें कुछ विदेशी प्रमाण आ गया है, वह है परमात्मा को प्रिया के रूप में देखना और जगत के समस्त रूपों को उसकी छाया से उद्भासित मानना। साधक प्रेमी उस प्रिया परमात्मा की खोज में निकल पड़ता है और उससे एकाकार हो जाना चाहता है। जायसी अद्वैतवाद के पक्षधर थे। अतः उनके काव्य में रहस्यवाद की भावना स्वतः प्रस्फुटित हुई है। जायसी ने सम्पूर्ण सृष्टि में उसी परमात्मा का दर्शन किया है।

जायसी के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि प्रेम से आप्लावित है। उन्हें कण-कण में उस प्रभु के प्रेम का आभास होता है, उन्होंने लिखा है –

उन्ह बानन्ह अस को जो न मारा।

बोधि रहा सिगर संसारा।

धरती बान बेधि सब राखी।

साखी ठाढ़ देहिं सब साखी ।

अलंकार निरूपण

जायसी के पद्मावत में सादृश्य-मूलक अलंकारों – का प्रयोग अधिक किया है। सादृश्य मूलक अलंकारों में से भी उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति तथा सांगरूपकों का प्रयोग अधिक मात्रा में हुआ है। रूपकातिशयोक्ति के द्वारा कवि का अद्भूत-कौशल दृष्टव्य है –

“साम भुअंगिनि रोमावली। नाभिहि निकसि कंवल कहँ चली। आइ दुबौ नारंग बिच भई। देखि मयूर ठमकि रहि गई ।।”

जब विरहिणी रूदन करती है, तो मानों उसके आँसुओं के रूप में मोती की

माला ही टूटती है ।

जायसी की अलंकार योजना पर कहीं-कहीं फारसी प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है, तथापि जायसी ने पर्याप्त रूप से भारतीय आलंकारिक परम्परा का ही अनुसरण किया है। कहीं-कहीं कुछ मौलिक उपमान भी संग्रहीत किये गये हैं। वस्तुतः जायसी की अलंकार निरूपण पद्धति अधिक प्रभावोत्पादक एवं आकर्षक हो गई है।

छन्द योजना

जायसी ने मुख्य रूप से अपने इस महाकाव्य में चौपाई – तथा दोहा-छन्द का ही प्रयोग किया है। डॉ० शम्भूनाथ सिंह ने जायसी की इस छन्द पद्धति को ‘कडवकवद्ध पद्धति’ कहा है। प‌द्मावत एक चरित काव्य है। चरित-काव्य के लिए दोहा-चौपाई, छन्द अधिक उपयुक्त होता है। कदाचित् जायसी ने भी इसीलिए इस छन्द-पद्धति को अपनाया।

जायसी की चौपाई तथा दोहों में शास्त्रीय नियमों का उल्लंघन कई स्थानों पर मिलता है। कहीं-कहीं जायसी के दोहों में चौबीस मात्राओं के स्थान पर बत्तीस मात्रायें हो गई हैं। इसी प्रकार चौपाई में कहीं-कहीं सोलह मात्रा के स्थान पर पन्द्रह मात्रा ही रह गई हैं। इससे सिद्ध है कि जायसी ने छन्द-सम्बन्धी पर्याप्त स्वतन्त्रता अपनाई है।

निष्कर्ष

मलिक मोहम्मद जायसी भारतीय साहित्य के एक ऐसे स्तंभ हैं, जिन्होंने प्रेम और भक्ति को अपने काव्य में अद्भुत रूप से पिरोया। उनका काव्य प्रेम के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और ईश्वर तक पहुँचने की प्रेरणा देता है। ‘पद्मावत’ केवल एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दर्पण है, जिसमें प्रेम, त्याग और भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिलता है।

उनकी कृतियाँ आज भी साहित्य प्रेमियों और भक्तों के लिए अमूल्य धरोहर बनी हुई हैं।

Read More : रीति काल की उत्पत्ति और विकास पर अपने विचार व्यक्त कीजिए और यह स्पष्ट कीजिए कि इसका ‘रीति काल’ नाम क्यों रखा गया ?

Related Articles

Leave a Comment

About Us

I am Sushanta Sunyani (ANMOL) From India & I Live In Odisha (Rourkela) I Love Blogging, Designing And Programming So Why I Choose As A career And I Am Trying To Share My Creativity With World. I Am Proud of My Mother Tongue Hindi as an Indian, & It is My Good Luck To Study Hindi Literature.

@2024 – All Right Reserved. Designed and Developed by Egyanpith