गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन के महान कवि थे। उनका जीवन आज भी अनेक रहस्यों से भरा हुआ है क्योंकि उन्होंने स्वयं अपने जीवन के बारे में बहुत कम लिखा है। उनके जीवन से जुड़े विभिन्न ग्रंथों, जैसे ‘भक्तमाल’ (नाभादास), ‘भक्तमाल की टीका’ (बाबा वेणीमाधवदास) और ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ में उनके बारे में उल्लेख मिलता है, लेकिन इन तथ्यों को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 (1522 ई.) में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हलसी था। जनश्रुति के अनुसार, तुलसीदास का जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था, जिसके कारण उनके माता-पिता ने उन्हें त्याग दिया। उनका पालन-पोषण संत नरहरिदास ने किया, जिन्होंने उन्हें शास्त्रों और पुराणों की शिक्षा दी। तुलसीदास श्री रामानंद की शिष्य परंपरा में रामभक्ति के प्रबल अनुयायी माने जाते हैं।
तुलसीदास जी का विवाह और विरक्ति
तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नामक महिला से हुआ था। एक कथा के अनुसार, जब उनकी पत्नी ने कठोर शब्दों में कहा कि “यदि तुम मुझसे इतना प्रेम करते हो, तो भगवान श्रीराम से क्यों नहीं करते?” तब तुलसीदास को वैराग्य हो गया और उन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके बाद वे तीर्थयात्रा पर निकल पड़े और अनेक स्थानों पर श्रीराम की भक्ति का प्रचार किया।
रामचरितमानस का रचनाकाल
संवत 1662 में तुलसीदास जी ने अयोध्या में ‘रामचरितमानस’ की रचना आरंभ की और दो वर्ष, सात महीने में इसे पूर्ण किया। यह ग्रंथ श्रीराम के जीवन पर आधारित है और इसे हिंदी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। इसकी भाषा अवधी है, जिससे यह सरलता से जनमानस में लोकप्रिय हो गया।
तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएँ
तुलसीदास जी ने कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं:
- रामचरितमानस – श्रीराम के जीवन पर आधारित महाकाव्य
- रामलला नहछू – बाल राम की लीलाओं का वर्णन
- वैराग्य संदीपनी – वैराग्य भाव पर आधारित रचना
- बरवे रामायण – संक्षिप्त रामायण
- पार्वती मंगल – माता पार्वती के विवाह पर रचित काव्य
- जानकी मंगल – माता सीता के विवाह की कथा
- रामाज्ञा प्रश्न – श्रीराम के आदेशों पर आधारित ग्रंथ
- दोहावली – नैतिकता और उपदेशों से भरा दोहा संग्रह
- कवितावली – वीर रस की प्रधानता वाली काव्य रचना
- गीतावली – भक्ति से भरपूर रचनाएँ
- विनयपत्रिका – भगवान श्रीराम के प्रति भक्तिपूर्ण निवेदन
- श्रीकृष्ण गीतावली – श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव की रचना
तुलसीदास जी की भाषा और शैली
तुलसीदास जी की भाषा मुख्य रूप से अवधी और ब्रज थी। उन्होंने अपने काव्य में संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग भी किया। उनके काव्य की विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- सहज, प्रवाहमयी और मधुर भाषा
- सरल और प्रभावशाली शब्दावली
- रस, छंद और अलंकारों का सुंदर प्रयोग
- धार्मिक और नैतिक उपदेशों से परिपूर्ण
तुलसीदास जी का निधन
तुलसीदास जी का निधन संवत 1680 (1623 ई.) की श्रावण शुक्ल सप्तमी को वाराणसी में हुआ। उनके निधन के समय यह दोहा प्रचलित था:
संवत सोलह सै असी, असीगंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यौ शरीर॥
तुलसीदास जी की विरासत
तुलसीदास जी ने भारतीय समाज में रामभक्ति आंदोलन को अत्यंत प्रभावशाली बनाया। उनके काव्य ने न केवल भक्ति को लोकप्रिय बनाया बल्कि हिंदी भाषा को भी समृद्ध किया। उनके ग्रंथ आज भी पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
निष्कर्ष
गोस्वामी तुलसीदास जी एक अद्वितीय संत और महाकवि थे, जिन्होंने अपने काव्य के माध्यम से समाज को भक्ति, नैतिकता और संस्कारों की शिक्षा दी। उनके द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ न केवल हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है, बल्कि यह भक्ति साहित्य का अद्वितीय ग्रंथ भी है। उनकी रचनाएँ आज भी हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
“रामचरित मानस बिनु, हरि करहि न कृपा।
तुलसी जब तक जगत में, राम नाम की सुदृढ़ नृपा॥”