हिन्दी साहित्य का काल विभाजन का क्या आधार है ?
यह एक अत्यंत विचारणीय प्रश्न है। वैसे तो समस्त साहित्य एक प्रवाहमान धारा के सदृश होता है। और इसका विभाजन कठिन ही नहीं दुसाध्य भी होता है, फिर भी अध्ययन की.. सुविधा के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। हिन्दी साहित्य के प्रायः सभी इतिहासकारों ने अपने-अपने इतिहास में विभिन्न प्रकार से काल विभाजन प्रस्तुत किया है। हिन्दी साहित्य की प्रारंभिक सीमा के संबंध में भी पर्याप्त मतभेद पाया जाता है।
कुछ इतिहासकार हिन्दी की परंपरा आठवीं सदी से मानते हैं और ७५० वि. सं. के आसपास हुए ‘पुष्प’ नाम के कवि को हिन्दी का प्रथम कवि कहते हैं। अन्य लेखक उसे अपभ्रंश का कवि मानते हैं। अन्य कुछ इतिहासकार ९ वीं सदी के गुरु गोरखनाथ को हिन्दी का प्रथम कवि कहकर उनसे हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रारंभ मानते हैं तथा कुछ लोग मानकर कवि चंदबरदाई को हिन्दी का प्रथम कवि होने का देते है। इस प्रकार अभी तक हिन्दी के प्रथम कवि का निर्णय भौ न हो सकने के कारण उसके काल विभाजन का प्रश्न भी अत्यन्त विचारणीय है ।
हिन्दी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण का संक्षिप्त परिचय । hindi sahitya ka kaal vibhajan aur naamkaran
काल विभाजन तत्कालीन जनता की मनोवृत्ति और विचारधारा को समझने में सहायक होता है। अत: जिस काल में किसी विशेष ढंग की रचनाओं की अधिकता खाई पड़ी है, वह एक अलग काल माना गया है। उसका नामकरण भी उन्हीं रचनाओं के स्वरूप के अनुसार किया गया है। इस आधार पर किया गया काल विभाजन ही व्यवस्थित कहा जा सकता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल से पहले जोर्ज ग्रियर्सन और एक ई. के ने अपने अपने इतिहासों में काल विभाजन दिया था,परन्तु उनका कोई निश्चित आधार न होने से परवर्ती लेखकों ने उन्हें महत्व नहीं दिया है।
रामचन्द्र शुक्ल जी के अनुसार काल विभाजन और नामकरण
रामचन्द्र शुक्ल ने ही सर्वप्रथम वैज्ञानिक काल विभाजन प्रस्तुत किया, जिसे अधिकांश विद्वानों ने मान्य रखा है। उनके अनुसार हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार कालों में विभाजित किया जा सकता है:-
(१) आदिकाल (वीरगाथाकाल) – सं. १०५० से १३७५ ।
(२) पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल) – सं. १३७५ से १७०० ।
(३) उत्तरमध्यकाल (रीतिकाल) – सं. १७०० से १९०० ।
(४) आधुनिककाल (गद्यकाल) – सं. १९०० से अब तक ।