तुलसी दास का साहित्यिक परिचय दीजिए । Tulsi das ka sahityik parichay

गोस्वामी तुलसी दास जी के जीवन परिचय

  गोस्वामी तुलसी दास जी का जन्म संवत् १५८९ में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हलसी था। रहीम की यह पंक्ति बड़ी प्रसिद्ध है- ‘गोद लिए हुलसी फिरे तुलसी सो सुत होय | जनश्रुति है कि अभुक्तमूल में पैदा होने के कारण ये अपने माता-पिता द्वारा त्याग दिये गये थे । इनका पालन-पोषण नरहरिदास ने किया और इन्हें शास्त्रों और पुराणों में पारंगत किया । तुलसीदास श्री रामानन्द की शिष्य परम्परा में रामभक्ति के प्रबलतम अनुयायी सिद्ध हुए ।

इनकी पत्नी का नाम रत्नावली था। जनश्रुति है कि अपनी पत्नी के परुष वचन सुनकर इन्हें संसार से विरक्ति हो गयी और इनका लौकिक प्रेम भगवद्भक्ति में परिवर्तित हो गया। इन्होंने भारत के प्रसिद्ध तीथों का भ्रमण समाप्त कर संवत् १६६२ में अयोध्या में ‘रामचरित मानस’ का प्रणयन आरम्भ किया और २ वर्ष ७ माह में इसे पूर्ण किया । गोस्वामी जी की मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा प्रचलित है ।

                          संवत् सोलह सै असी, असीगंग के तीर ।

                        श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यौ शरीर ॥

तुलसी दास का साहित्यिक परिचय tulsidas ji ka sahityik parichay

  हिन्दी साहित्य को राम-भक्ति का प्रौढ़ साहित्य देने का श्रेय इन्हीं की है। इन्हीं के कारण जनमानस के हृदय में राम भक्ति की अपूर्व लहर दौड़ गयी । लोकधर्म का इतना बड़ा प्रतिपादक और मर्मश हिन्दी में दूसरा कवि नहीं हुआ। उनके काव्य में तत्कालीन युग और जन-जीवन के सजीव चित्र मिलते हैं। उनके सारे काव्य में समन्वय का स्वर गूंजता है। अपने समय के गना मतमतान्तरों का समन्वय करने के कारण वे लोकनायक कहलाये ।

   हिन्दी काव्य क्षेत्र में तुलसी का आविर्भाव अभूतपूर्व घटना थी। इन्हीं की रचनाओं में हिन्दी काव्य की गुप्त शक्तियों का प्रस्फुटन सम्यक् रीति से हुआ दिखायी पड़ा। भाषा, भाव और शैली का प्रौढ़ और परिमार्जित रूप जैसा तुलसी काव्य में मिलता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। काव्य के सर्वामीण विकास में तुलसी की देन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि मानी जायगी।

गोस्वामी तुलसी दास जी के समय में हिन्दी काव्य में मुख्य पाँच शैलियाँ थी –

१. वीरगाथा काल की छप्पय पद्धति,

२. विद्यापति की गीत-पद्धति,

३. भाटों की कवित सवैया पद्धति,

४. कबीर आदि की दोहा पद्धति और

५. ईश्वरदास और जायसी की दोहा-चौपाई-पद्धति ।

गोस्वामी तुलसी दास जी की भाषा शैली

गोस्वामी तुलसी दास जी ने अपनी प्रतिभा से उक्त सभी शैलियों का प्रयोग कर अपने काव्य को सौन्दर्य की चरम सीमा पर पहुंचा दिया। भाषा के क्षेत्र में भी तुलसी का प्रयत्न स्तुत्य है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने ब्रज और अवधी दोनों भाषाओं में रचनाएँ किए है । तुलसी ने ही अवधी को विशुद्ध साहित्यिक रूप प्रदान किया उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है।

तुलसी की दृष्टि विस्तृत थी। इसी कारण ये उत्तर भारत की जनता के मन मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। ये भारतीय जनता के सच्चे प्रतिनिधि कवि थे। डॉ. ग्रियर्सन का मत है कि बुद्धदेव के बाद भारत में सबसे बड़े लोकनायक तुलसीदास थे । अन्य कवियों ने जीवन के किसी एक पक्ष का वर्णन किया है, किन्तु तुलसी की वाणी के अन्तर्गत मनुष्य के सारे भाव और व्यवहार आ जाते हैं ।

तुलसी दास जी की रचनाएँ

गोस्वामी तुलसी दास जी के प्रमुख ग्रन्थ हैं –

  • रामचरित मानस,
  • कवितावली,
  • विनयपत्रिका,
  • गीतावली,
  • रामाज्ञा प्रश्नावली,
  • रामलला नहछू,
  • पार्वती मंगल,
  • जानकी मंगल,
  • वैराग्य-संदीपनी एव बरवै रामायण
  • हनुमान बाहुक ।

गोस्वामी तुलसी दास जी की काव्य कला

  रस और पात्रानुकुल भाषा लिखने का उन्हें सदैव ध्यान रहा। स्त्री पात्रों के सम्बादों में उन्होंने ठेठ भाषा का प्रयोग किया है। काव्यशास्त्रीय दृष्टि से तुलसी के ग्रन्थ अत्यन्त सफल हैं। छन्दों की विविधता, प्रसंगानुकूल उनका चुनाव और रसनिर्वाह इन्हें काव्यशास्त्र का पण्डित सिद्ध करता है। मनोविकारों के चित्रण में तुलसी अद्वितीय हैं।

  ‘रामचरित मानस’ तुलसी की प्रतिभा का ज्वलन्त प्रतीक है। यह सर्वोत्तम महाकाव्य है। कथा का आद्योपान्त सफल निर्वाह, मार्मिक स्थलों की पहचान, प्रसंगानुकूल भाषा और मर्यादित श्रृंगाररस का वर्णन इस महाकाव्य की प्रमुख विशेषताओं में से हैं । कवि के उपदेश भी काव्य की सरसता से आवृत रहने के कारण नीरस नहीं प्रतीत होते ।

   गीतावली में मुक्तक पदों में रामकथा का प्रवन्धत्वपूर्ण वर्णन है। कवितावली में मुक्तक छन्दों का संकलन है । विनयपत्रिका में कवि के दैन्य और दास्यभाव से पूर्ण पद हैं। भक्ति-पद्धति के निर्वाह के साथ-साथ उच्चकोटि का कवित्व इसमें मिलता है। अन्य ग्रन्थ छोटे किन्तु भावपूर्ण है। उदाहरण

दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुन्दर मंदिर माँही । 

गावत गीति सबै मिलि सुन्दर, वेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाहीं ॥ 

राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाहीं । 

याते सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ॥

 

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