रीति काल की उत्पत्ति और विकास पर अपने विचार व्यक्त कीजिए और यह स्पष्ट कीजिए कि इसका ‘रीति काल’ नाम क्यों रखा गया ? or रीति काल की सामान्य परिस्थितियों तथा उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिये ।

रीति काल का अर्थ

रीति काल का अर्थ रीति शब्द की व्याख्या विशिष्ट ‘पद-रचना रीति’ से की गई है। दूसरे शब्दों में इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि जिस काल में भाषा अलंकार के भावों के कला-पक्ष, काव्य शास्त्रों के विभिन्न अंगो रस, ध्वनि गुणदोषादि का सूक्ष्म विवेचन हुआ हो । वह काल रीति काल नाम से हिन्दी साहित्य में पुकारा जाता है। वास्तव में भक्ति काल में जिस प्रकार की रचना हुई वह हिन्दी के लिए क्या किसी भी भाषा के लिए गौरव की बात थी। यह हिन्दी काल का स्वर्ण युग था। इस काल में हिन्दी की कविता राजाओं से नहीं अपितु महान अन्तः भूत साधक भक्त कवियों के हृदय से निकलकर अमर वाणी का सृजन कर गई साथ ही भविष्य के लिए चेतना और जागरण का महान सन्देश दे गई।

रीति काल की उत्पत्ति 

  मुसलमानी राज्य के प्रतिष्ठित हो जाने के पश्चात भारत में एक नवीन युग आया। मुगलों की सुख समृद्धि तथा विलासिताका प्रभाव हमारे हिन्दी साहित्य पर पड़ा जहाँगीर की जननी और जन्म भूमि दोनों हिन्दी थी। वह हिन्दी कवियों को दान और मान दोनों देता था। उसका भाई दानियाल भी पहले [हिन्दी] ‘ब्रजभाषा’ का कवि था। जहाँगीर के पुत्र शाहजहाँ को इस क्षेत्र में हम और आगे पाते हैं। वह हिन्दी का दक्ष कवि या और जन्म से हिन्दवी था। वैष्णव माधुर्य भावना से शील, शक्ति और सौन्दर्य में महत्व और पुजारी कनक और कामिनी की उपासना में कृष्ण और राम को रिझाने का मन इसलिए भी कर रहे थे कि इसमें उनका दैहिक तथा भौतिक कल्याण था ।
   शांति और सुव्यवस्था जहाँ समाज के विकास और सुख मंगल कार खोलती है वहीं यह व्यक्ति को पुरुषार्थ और संघर्ष से विरत कर विलासिता की ओर उन्मुख करती है। मुगलकालीन समाज में दो वर्ग स्पष्ट थे सुख साधन सम्पन्न विलासोन्मुख वर्ग और जीवन के अस्तित्व की रक्षा कर अपना अस्तित्व किसी प्रकार बनाये रखने वाला निर्धन वर्ग। दूसरे के लिए अन्न ही ब्रह्मा, अन्य किसी बात की चिन्ता के लिए उसके यहाँ स्थान ही न था पर इन्हीं के पुरुषार्थ पर जीवित था पहिला वर्ग जिसके लिए उस युग में उपलब्ध समग्र विलास-प्रसाधन सुलभ थे । कविता, चित्रकला स्थापत्य और संगीत सब इसी वर्ग के लिये थे।

रीति काल का नामकरण 

  रीति काल के ऐसे साहित्य के सम्बन्ध में नामकरण को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद रहा है। कोई इसे अलंकृत काल, कुछ लोग श्रृंगार काल और कुछ लोग इसे रीति-श्रृंगार युग के नाम से सम्बोधित करते थे । हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में शुक्लजी का मानदण्ड इतिहास के क्षेत्र में मेरुदण्ड की भाँति प्रतिष्ठित है। उन्होंने इसे रीतिकाल की संज्ञा दी है। रीति-काल के सामान्य परिचय में शुक्ल जी ने स्वयं कहा कि ‘इस काल को रस के विचार से कोई श्रृंगार काल कहे तो कह सकता है। रीतियुगीन काव्य में श्रृंगार काव्य चरक की प्रधानता है रीति काल का साहित्य जहाँ रस विश्लेषण की ओर उन्मुख होता है, वहाँ पर गम्भीरता के अन्तस्थल को स्पर्श मात्र करता है।
   रीतिकालीन साहित्य से जहाँ थोड़ा लाभ पहुंचा है वहाँ उससे हानि भी हुई है। क्योंकि कवियों की दृष्टि इस काल में जीवन की भिन्न-भिन्न दशाओं और विश्व के अनेक रहस्यों का उद्घाटन करने की ओर न जा सकी। इस में कवियों की कामनीयः दृष्टि काम क्रीडा पर ही जाने लगी और वे अपने सारे जीवन में इसी क्रीड़ा का कौतुक देखते रहे जिसमें उनकी वाणी सीमित हो गई।
    भाषा के क्षेत्र में ब्रजभाषा शुद्ध टकसाली नहीं है। मुसलमानी राज्य की प्रतिष्ठा होने के बाद फारसी और अरबी के शब्द भी इसमें मिल गये । इस युग के कवियों ने अनुप्रास, चमत्कार और ध्वनि प्रदर्शन के लिए शब्दों को तोड़ने-मरोड़ने में भी हिचकिचाहट नही दिखाई ।
   इस काल के कवियों में केशव, मतिराम, चिन्तामणि, भिखारीदास, तोषनिधि, बिहारी, सेनापति पद्माकर कवि हुए। राष्ट्रीय कवि परम्परा की पंक्ति में भूषण और लाल कवि का नाम विशेष उल्लेखनीय है ।

रीति काल की विशेषताएँ

(१) इस काल में हारिक रचना की प्रचुरता थी। यह श्रृजार साधन नहीं वरन् साध्य हो गया । इसमें विरह वेदना अधिक है।
(२) श्रृंगार रस के साथ इस काल में वीर रस की भी अच्छी कवितायें की गई।
(३) रस अलंकार और काव्यांगों की भी इस काल में विवेचना हुई। दोहा, कवित्त और सवैयों की प्रधानता रही ।
(४) भुक्तक काव्य की रचनायें अधिक हुई तथा लक्षण ग्रंथों का अधिक निर्माण हुआ।
   संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि रीति काल के सम्पूर्ण साहित्य पर केशव के सम्प्रदाय की छाप रही और उन्हीं के प्रभाव से सभी कवि रीतियों में बँधकर चले रीति काल में जहाँ एक ओर श्रृंगार रस की धारा बही वहीं दूसरी ओर लक्षण ग्रंथों और मुक्तक काव्यों का निर्माण महत्वपूर्ण रहा। श्रृंगार रस में विरह पक्ष अधिक प्रबल रहा ।

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