रीतिकाल या श्रृंगारकाल
‘रीति’ शब्द का प्रयोग निश्चित प्रणाली, ढंग और नियम के अर्थ में होता है । अतः रीतिकाल में हमारा अभिप्राय हिन्दी-साहित्य के उस काल से है, जिसमें निश्चित प्रणाली के अनुसार काव्य-कला का विकास हुआ। भक्तिकाल के … Read More
काव्य की दृष्टि से घनानन्द कृष्णोपासक भक्त कवियों की पंक्ति में हैं पर कल – विभाजन की दृष्टि से इनकी गणना रीतिकालीन कवियों में की जाती है। काल इनका जीवन वृत्त भी
केशवदास समय विभाग के अनुसार भक्तिकाल में आते हैं पर संस्कृत साहित्य से इतने प्रभावित रहे कि तत्कालीन हिन्दी काव्य-धारा से पृथक होकर वे चमत्कारी कवि हो गए तथा हिन्दी में रीतिग्रन्थों की परम्परा के आदि
महाकवि बिहारी का जन्म संवत १६६० में ग्वालियर के समीप बसुआ गोविन्दपुर में हुआ था। आप मथुरा के चौबे थे। इनकी बाल्यावस्था अधिकतर बुन्देलखण्ड में बीती | तरुणावस्था में ये अपनी ससुराल चले आए। श्री … Read More
भक्तिकाल में कृष्णस्वरूप का गान करनेवाले भक्त कवियों ने राधा और कृष्ण के प्रेम का सुन्दर गान किया। उनका प्रेम वासना से अछूता शुद्ध ईश्वरीय प्रेम था। जब हम सूर और मीरा के पद पढ़ते हैं तो हमारी भक्ति-भावना जाग … Read More