राम भक्ति के प्रचार प्रसार
यद्यपि कृष्ण भक्ति के सामने राम भक्ति का उतना प्रचार नहीं हुआ किन्तु राम भक्ति के प्रचार-प्रसार में तुलसीदास जी ने राम-भक्ति की गुरुता और गम्भीरता व नैतिक स्तर को ऊंचा उठाने में कोई कसर नहीं उठा रखी, राम काव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसी ने अपने रामचरितमानस में राम का रंजक रूप सामने रखा, उनके काव्य कौशल के समक्ष सभी कवि हतप्रभ हो जाते हैं । तुलसीदास जी कृतियों में राम-भक्ति का चरम विकास देखकर जनता की चित्त-वृत्ति दूसरी ओर नहीं जा सकी । तुलसीदास जी के बाद ऐसा कोई कवि न हुआ जो राम भक्ति को आगे बढ़ाने में पथ-प्रदर्शक बन जाता । गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में राम का गुणगान किया, जिसमें राम भक्ति काव्य का चरम विकास हुआ। वैदिक काल से ही विष्णु का बड़ा महत्व चला आ रहा है। कालांतर में ब्रह्मा और महेश भी विष्णु के सृजन और संहार के रूप में माने गये । इस प्रकार विष्णु की उपासना करनेवाले वैष्णव मतावलम्बी कहलाये। वैष्णव मत का मूल सिद्धांत भक्ति है यह भक्ति मार्ग नारायण को प्रधान मानकर चलता है। इस मत में विष्णु और उनके अवतार महत्वपूर्ण है।
शंकराचार्य ने जिस अद्वैतवाद की प्रतिष्ठा की वह भक्ति के सम्पर्क तथा प्रसार के लिए उपयुक्त न था। उसमें ब्रह्मा की व्यावहारिक सगुण सत्ता पर उतना जोर नहीं दिया गया था जितना कि औसत आदमी की इस ओर आकर्षित करने के लिए आवश्यक था उनके विशिष्ठ अद्वैतवाद के अनुसार समस्त विश्व ब्रह्मा का ही अंश है और उसी में समा जाता है। इनकी शिष्य परम्परा में रामानन्द हुए गुरु से मतभेद होने. पर ये मठ छोड़कर उत्तर भारत में आ गये । मध्ययुगीन समस्त स्वाधीन चिंता के गुरु रामानन्द ही थे ।
सोलहवीं शताब्दी में रामानन्द ने राम रूप में विष्णु की उपासन का प्रचार करना शुरू किया। इसके अतिरिक्त अन्य भक्तों ने भी सगुणोपासना का मार्ग प्रशस्त किया। श्री रामानन्द ने मनुष्य मात्र को सगुण भक्ति का अधिकारी घोषित करके उपासना का द्वार सबके लिए खोल दिया, इन्हीं की शिष्य परम्परा की सातवीं पीढ़ी में गोस्वामीजी का नाम आता है जिन्होंने रामचरित मानस जैसे प्रसिद्ध ग्रंथ का निर्माण किया। तुलसीदास जन्म संवत् १५५४ में बाँदा जिला के अन्तर्गत राजापुर नामक ग्राम में हुआ। उनकी माता का नाम तुलसी और पिता का नाम आत्माराम था । जन्म से निराश्रित हो जाने के कारण इन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी पत्नी की फटकार के कारण इन्हें वैराग्य हुआ। इनमें अभूतपूर्व पांडित्य और कवित्व-शक्ति थी ।
राम भक्ति शाखा के अन्य कवियों में अग्रदास, नाभादास, लालदास, प्रियदास, कलानिधि महाराज विश्वनाथ महाराज रघुराज सिंह तथा मैथिलीशरण गुप्त आदि आते हैं । गुप्त जी रचनाओं को छोड़कर अन्य लोगों ने अधिक रचनाएँ नहीं की हैं। काव्य-कला की दृष्टि से इन लोगों को कोई विशेष महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिला ।
राम भक्ति शाखा के कवियों की काव्य विशेषतायें निम्न है :
१. जीवन के कर्तव्यों का सुन्दर पथ प्रदर्शन किया गया ।
२. काव्य में समन्वय की भावना विशेष प्रकार से दिखाई पड़ती हैं ।
३. हिन्दुओं में एकता तथा दृढ़ता स्थापित करने को प्रयास किया गया ।
४. काव्य के भाव पक्ष तथा कला पक्ष का उत्कृष्ट रूप सामने आया ।
५. भक्ति का आदर्श रूप ही इसकी मुख्य विशेषता थी।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि राम भक्ति शाखा के कवियों ने जहाँ एक ओर हिन्दुओं की एकता पर बल दिया वहीं काव्य के भावपक्ष और कला पक्ष द्वारा भक्ति का आदर्श रूप सामने रखा।
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