प्रेमचंद का जीवन परिचय | premchand ka jivan parichay

भारतीय उपन्यास और कहानी साहित्य की चर्चा प्रेमचंद के बिना अधूरी है। धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936), जिन्हें हम मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानते हैं, हिन्दी-उर्दू कथा साहित्य के आधार-स्तंभ माने जाते हैं। वे केवल एक लेखक ही नहीं, बल्कि एक गहन चिंतक, समाज-सुधारक, मानवतावादी और यथार्थवादी कथाकार थे।

उनकी रचनाएँ भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन का ऐसा दर्पण हैं, जिसमें आम मनुष्य का संघर्ष, पीड़ा, स्वप्न, आशा और यथार्थ साफ दिखाई देता है। यही कारण है कि 1918 से 1936 तक के कालखंड को प्रेमचंद युग कहा जाता है।

विषयविवरण
नाममुंशी प्रेमचंद
बचपन का नामधनपत राय श्रीवास्तव
उर्दू रचनाओं में नामनवाबराय
जन्म31 जुलाई 1880
जन्मस्थानलमही ग्राम, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु8 अक्टूबर 1936
पेशालेखक, अध्यापक, पत्रकार
माताआनंदी देवी
पिताअजायब राय
पत्नीशिवारानी देवी (1906–1938)
पुत्रअमृतराय, श्रीपथराय
पुत्रीकमला देवी
प्रमुख उपन्याससेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान
प्रमुख नाटककर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी
प्रमुख कहानी-संग्रहमानसरोवर
प्रसिद्ध कहानियाँनमक का दारोगा, पूस की रात, बड़े भाई साहब, मंत्र
भाषाएँहिन्दी, उर्दू
शैलीवर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक
साहित्य कालआधुनिक काल
विधाएँकहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
साहित्य में स्थानआधुनिक काल के सर्वोच्च उपन्यासकार एवं कहानीकार
संपादनमाधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण

प्रेमचंद का जीवन-परिचय 

premchand ka jivan parichay

जन्म और परिवार

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही गाँव (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) के एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ।
पिता का नाम मुंशी अजायबराय (डाक-मुंशी) और माता का नाम आनंदी देवी था।
उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।

बाल्यकाल के संघर्ष

  • 7 वर्ष की उम्र में माँ का निधन
  • 15 वर्ष की उम्र में बाल-विवाह
  • 16 वर्ष में पिता का देहांत
  • सौतेली माँ का कठोर व्यवहार
  • गरीबी और आर्थिक संघर्ष

इन्हीं अनुभवों ने उनके भीतर सामाजिक विषमताओं को देखने की दृष्टि विकसित की और यही उनकी कहानियों की मूल प्रेरणा बनी।

शिक्षा

आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई।

  • 1898: मैट्रिक उत्तीर्ण
  • 1910: इंटर (अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी, इतिहास)
  • 1919: बी.ए.

पढ़ाई के साथ शिक्षक और बाद में स्कूल इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति।

नौकरी छोड़कर साहित्य की ओर

1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।
इसके बाद वे पूर्ण रूप से साहित्य, संपादन और प्रकाशन में लग गए।

उन्होंने हंस, जागरण, मर्यादा, माधुरी जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया और सरस्वती प्रेस भी चलाया।

प्रेमचंद का साहित्यिक सफर

munshi premchand books

पहली लेखन-रचना उर्दू में “नवाब राय” नाम से।
पहला उपन्यास: असरारे मआबिद (देवस्थान रहस्य)
पहला कहानी संग्रह: सोज़े-वतन (1908) – जिसे ब्रिटिश शासन ने प्रतिबंधित कर दिया।

यही वह घटना थी जिसके बाद उन्हें अपना नाम बदलकर “प्रेमचंद” रखना पड़ा।

प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास (Major Novels of Premchand)

1. सेवासदन (1918)

  • स्त्री-समस्याएँ
  • दहेज, अनमेल विवाह, स्त्री-शिक्षा

2. प्रेमाश्रम (1922)

  • किसान आंदोलन, भूमि-बेगार, सामंती शोषण

3. रंगभूमि (1925)

  • नायक सूरदास (अंधा भिखारी) – मानवीय संघर्ष का प्रतीक

4. निर्मला (1925)

  • अनमेल विवाह, बाल-विवाह, स्त्री पीड़ा

5. कायाकल्प (1926)

6. गबन (1928)

  • मध्यम वर्ग का आर्थिक-नैतिक संघर्ष

7. कर्मभूमि (1932)

  • दलित समस्या, मंदिर प्रवेश, लगान-व्यवस्था

8. गोदान (1936)

  • किसान जीवन पर सबसे महान उपन्यास
  • विश्व साहित्य की उत्कृष्ट कृति

9. मंगलसूत्र (अपूर्ण)

  • अमृत राय द्वारा पूरा किया गया

प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ

वे लगभग 300 से अधिक कहानियों के लेखक थे, जो मानसरोवर के 8 खंडों में प्रकाशित हैं।

क्रमांककहानी का नामक्रमांककहानी का नाम
1अन्धेर2अनाथ लड़की
3अपनी करनी4अमृत
5अलग्योझा6आखिरी तोहफ़ा
7आखिरी मंजिल8आत्म-संगीत
9आत्माराम10दो बैलों की कथा
11आल्हा12इज्जत का खून
13इस्तीफ़ा14ईदगाह
15ईश्वरीय न्याय16उद्धार
17एक आँच की कसर18एक्ट्रेस
19कप्तान साहब20कर्मों का फल
21क्रिकेट मैच22कवच
23कातिल24कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
25कौशल़26खुदी
27गैरत की कटार28गुल्लीडंडा
29घमण्ड का पुतला30ज्योति
31जेल32जुलूस
33झाँकी34ठाकुर का कुआँ
35तेंतर36त्रिया-चरित्र
37तांगेवाले की बड़38तिरसूल
39दण्ड40दुर्गा का मन्दिर
41देवी42देवी – एक और कहानी
43दूसरी शादी44दिल की रानी
45दो सखियाँ46धिक्कार
47धिक्कार – एक और कहानी48नेउर
49नेकी50नबी का नीति-निर्वाह
51नरक का मार्ग52नैराश्य
53नैराश्य लीला54नशा
55नसीहतों का दफ्तर56नाग-पूजा
57नादान दोस्त58निर्वासन
59पंच परमेश्वर60पत्नी से पति
61पुत्र-प्रेम62पैपुजी
63प्रतिशोध64प्रेम-सूत्र
65पर्वत-यात्रा66प्रायश्चित
67परीक्षा68पूस की रात
69बैंक का दिवाला70बेटोंवाली विधवा
71बड़े घर की बेटी72बड़े बाबू
73बड़े भाई साहब74बन्द दरवाज़ा
75बाँका जमींदार76बोहनी
77मैकू78मन्त्र
79मंदिर और मस्जिद80मनावन
81मुबारक बीमारी82ममता
83माँ84माता का ह्रदय
85मिलाप86मोटेराम जी शास्त्री
87स्वर्ग की देवी88राजहठ
89राष्ट्र का सेवक90लैला
91वफ़ा का खँजर92वासना की कड़ियाँ
93विजय94विश्वास
95शंखनाद96शूद्र
97शराब की दुकान98शान्ति
99शादी की वजह100शान्ति (दूसरी)
101स्त्री और पुरुष102स्वर्ग की देवी
103स्वांग104सभ्यता का रहस्य
105समर यात्रा106समस्या
107सैलानी बन्दर108स्वामिनी
109सिर्फ एक आवाज110सोहाग का शव
111सौत112होली की छुट्टी
113नमक का दरोगा114गृह-दाह
115सवा सेर गेहूँ116दूध का दाम
117मुक्तिधन118कफ़न

मुंशी प्रेमचंद के कहानी–संग्रह

क्रमांककहानी-संग्रहवर्ष / प्रकाशन विवरणप्रमुख कहानियाँ / विशेषताएँ
1सप्तसरोज1917बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दण्ड, पंच परमेश्वर, नमक का दारोगा, परीक्षा, उपदेश आदि 7 कहानियाँ।
2नवनिधिनौ कहानियाँ: राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता, पछतावा।
3प्रेमपूर्णिमाप्रेम एवं मानवीय संबंधों पर आधारित कहानियों का संग्रह।
4प्रेम–पचीसी25 चयनित कहानियों का संग्रह; विविध सामाजिक विषय शामिल।
5प्रेम–प्रतिमानैतिकता, मानवीय मूल्यों एवं समाजिक यथार्थ वाली कहानियाँ।
6प्रेम–द्वादशी12 उत्कृष्ट चयनित कहानियाँ।
7समरयात्रा11 राजनीतिक–सामाजिक कहानियाँ: जेल, कानूनी कुमार, पत्नी से पति, लांछन, ठाकुर का कुआँ, शराब की दुकान, जुलूस, आहुति, मैकू, होली का उपहार, अनुभव आदि।
8मानसरोवर (1–8 भाग)मरणोपरांतलगभग 300+ कहानियों का संग्रह; ‘कफन’ सहित प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ आठ भागों में प्रकाशित।

मुंशी प्रेमचंद के नाटक

क्रमांकनाटक का नामप्रकाशन वर्षविषय / विशेषताएँ
1संग्राम1923किसानों की कुरीतियाँ, फिजूलखर्ची, कर्ज, आर्थिक शोषण, फसल को सस्ते दामों में बेचने की मजबूरी।
2कर्बला1924ऐतिहासिक–धार्मिक पृष्ठभूमि में लिखा नाटक; करुणा एवं भावनाओं से भरपूर।
3प्रेम की वेदी1933सामाजिक–नैतिक मूल्यों और मानव-चरित्र पर आधारित नाटक।

प्रेमचंद : कथेतर साहित्य 

प्रेमचंद केवल कथा-साहित्य के महापंडित ही नहीं थे, बल्कि निबंधकार, आलोचक, विचारक, संपादक, अनुवादक और सामाजिक चिन्तक के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं। उनका कथेतर साहित्य समाज, राजनीति, भाषा, संस्कृति, किसान-जीवन, राष्ट्रवाद और साहित्य की भूमिका पर गंभीर विचार प्रस्तुत करता है।

1. कथेतर रचनाएँ

(1) विविध प्रसंग

  • संपादक : अमृतराय

  • दो खण्डों में प्रकाशित यह संग्रह प्रेमचंद की कथेतर रचनाओं का महत्वपूर्ण संकलन है।

    • पहला खण्ड : वैचारिक निबंध, संपादकीय, टिप्पणियाँ

    • दूसरा खण्ड : प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह

(2) प्रेमचंद के विचार

  • तीन खण्डों में प्रकाशित यह विशाल संकलन प्रेमचंद के विविध विषयों पर लिखे गए निबंधों, संपादकीयों और सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियों को प्रस्तुत करता है।

(3) साहित्य का उद्देश्य

  • यह एक महत्वपूर्ण निबंध-संग्रह है, जिसमें कुल 40 लेख शामिल हैं।

  • इसमें साहित्य की सामाजिक भूमिका, कला का प्रयोजन और रचनाकार की जिम्मेदारी पर गहन विचार दिए गए हैं।

(4) चिट्ठी-पत्री

  • दो खण्डों में प्रकाशित प्रेमचंद के पत्रों का महत्वपूर्ण संकलन।

  • पहला खण्ड संपादक : अमृतराय, मदनगोपाल

  • इसमें दयानारायण निगम, जयशंकर प्रसाद, जैनेंद्र आदि समकालीनों से पत्राचार शामिल है।

  • दूसरा खण्ड : अमृतराय द्वारा संपादित

 प्रमुख निबंधों की सूची

  • पुराना जमाना–नया जमाना

  • स्वराज के फायदे

  • कहानी कला (1,2,3)

  • कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार

  • हिन्दी-उर्दू की एकता

  • महाजनी सभ्यता

  • उपन्यास

  • जीवन में साहित्य का स्थान

इन निबंधों में प्रेमचंद की भाषा-चेतना, साहित्य-दृष्टि, राजनीति-बोध और समाज-सुधारवादी विचार उजागर होते हैं।

 अनुवाद कार्य

प्रेमचंद न केवल मौलिक रचनाकार, बल्कि सफल अनुवादक भी थे। उन्होंने विश्व-स्तरीय साहित्य को हिन्दी के पाठकों तक पहुँचाया।

प्रमुख अनुवाद :

  • टॉलस्टॉय की कहानियाँ (1923)

  • गाल्सवर्दी के तीन नाटक

    • हड़ताल (1930)

    • चाँदी की डिबिया (1931)

    • न्याय (1931)

  • फसान-ए-आज़ाद का हिन्दी अनुवाद → आज़ाद कथा (बहुत प्रसिद्ध)

 विविध रचनाएँ

(क) बाल साहित्य

  • रामकथा

  • कुत्ते की कहानी

  • दुर्गादास

(ख) विचार, निबंध

  • प्रेमचंद : विविध प्रसंग

  • प्रेमचंद के विचार (तीन खण्ड)

 संपादन कार्य

प्रेमचंद ने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन करके हिन्दी साहित्य में नई चेतना जगाई—

  • जागरण (समाचार पत्र)

  • हंस (मासिक साहित्यिक पत्रिका)

  • सरस्वती प्रेस का संचालन

  • उर्दू पत्रिका जमाना में नवाब राय नाम से लेखन

 प्रेमचंद की साहित्यिक विशेषताएँ

मन्नू भंडारी के अनुसार प्रेमचंद की सबसे बड़ी विशेषताएँ—

  • उन्होंने राजनीति, समाज, परिवार, किसान-जीवन और दलित-जीवन को अपनी रचनाओं में अभूतपूर्व रूप से प्रस्तुत किया।

  • दलित विमर्श का प्रारंभ हिन्दी में प्रेमचंद के लेखन से माना जा सकता है।

  • आम आदमी की पीड़ा उनका मुख्य विषय रही।

  • उनके कथेतर साहित्य में सुधारवादी सोच और प्रगतिशील दृष्टि मिलती है।

7. विचारधारा

प्रेमचंद की विचारधारा समय के साथ विकसित हुई—

  • आदर्शोन्मुख यथार्थवाद : उनका घोषित साहित्यिक सिद्धांत

  • स्वतंत्रता संग्राम के सर्वश्रेष्ठ कथाकार

  • मानवतावादी, राष्ट्रवादी और मार्क्सवादी प्रवृत्ति

  • प्रगतिशील लेखक संघ (1936) के प्रथम सम्मेलन के सभापति

  • उनके भाषण को ही प्रगतिशील आंदोलन का “घोषणापत्र” माना गया

प्रेमचंद हिन्दी के प्रथम प्रगतिशील लेखक माने जाते हैं।

8. प्रेमचंद की परंपरा

उनके द्वारा स्थापित यथार्थवादी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख लेखक—

  • निराला – अलका, कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा

  • पढ़ीस – चकल्लस, क्या से क्या

  • अमृतलाल नागर

  • नरेंद्र शर्मा

  • फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन, श्रीनाथ सिंह – ग्रामीण यथार्थ की परंपरा जारी रखी

9. प्रेमचंद संबंधी प्रमुख जीवनी

(1) प्रेमचंद घर में – शिवरानी देवी (1944)

  • प्रेमचंद के निजी और पारिवारिक जीवन का मार्मिक चित्रण

  • 2005 में प्रबोध कुमार द्वारा संशोधित संस्करण

(2) प्रेमचंद : कलम का सिपाही – अमृतराय (1962)

  • सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रमाणिक जीवनी

  • प्रेमचंद के पत्रों का विस्तृत उपयोग

(3) कलम का मजदूर : प्रेमचन्द – मदन गोपाल (1964)

  • अंग्रेजी में मूल रचना, बाद में हिन्दी अनुवाद

  • परिवार के बाहर के विद्वान द्वारा लिखी गई सबसे विश्वसनीय जीवनी

10. आलोचनात्मक पुस्तकें

  • प्रेमचंद और उनका युग – रामविलास शर्मा

  • प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य (दो भाग) – कमलकिशोर गोयनका

  • प्रेमचंद विश्वकोश – कमलकिशोर गोयनका

  • प्रेमचंद : सामंत का मुंशी – डॉ. धर्मवीर

  • प्रेमचंद की नीली आँखें – डॉ. धर्मवीर

11. प्रेमचंद और सिनेमा

उन पर आधारित प्रमुख फ़िल्में व धारावाहिक—

  • शतरंज के खिलाड़ी – सत्यजित राय (1977)

  • सद्गति – सत्यजित राय (1981)

  • सेवासदन – सुब्रमण्यम (1938)

  • ओका ऊरी कथा – तेलुगू फिल्म (कफ़न पर आधारित) (1977) – राष्ट्रीय पुरस्कार

  • गोदान (1963) – प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म

  • गबन (1966)

  • निर्मला – टीवी धारावाहिक (1980)

12. स्मृतियाँ

  • 1980 में भारतीय डाक विभाग द्वारा 30 पैसे का डाक-टिकट

  • गोरखपुर में प्रेमचंद साहित्य संस्थान

  • लमही (वाराणसी) में प्रेमचंद की प्रतिमा

  • सरकार द्वारा लमही में स्मारक बनाने की घोषणा

13. विवाद

कमलकिशोर गोयनका द्वारा उठाए गए कुछ आरोप—

  • पहली पत्नी से अनबन

  • कुछ अन्य महिलाओं से संबंध का आरोप

  • जागरण विवाद में विनोदशंकर व्यास के साथ मतभेद

  • सरस्वती प्रेस में प्रबंधन संबंधी विवाद

  • मजदूरों की हड़ताल

  • बेटी की बीमारी में झाड़-फूँक का सहारा

(ये आरोप साहित्यिक बहसों का हिस्सा हैं, ऐतिहासिक निष्कर्ष नहीं।)

14. नाम को लेकर भ्रम

“हंस” पत्रिका के संपादक प्रेमचंद और कन्हैयालाल मुंशी थे।
समय के साथ ‘मुंशी’ और ‘प्रेमचंद’ को एक नाम मान लिया गया और वे लोकप्रिय रूप से मुंशी प्रेमचंद कहलाने लगे।

प्रेमचंद की लेखन शैली

प्रेमचंद की लेखनी की सबसे बड़ी विशेषता आदर्शोन्मुख यथार्थवाद है।
उनकी रचनाओं में
सामाजिक समस्याएँ
जाति-भेद
दहेज
बाल-विवाह
गरीबी
किसान-जीवन
स्त्री-स्वतंत्रता
राष्ट्रवाद
मानवता
प्रगतिशीलता

सभी का सजीव चित्रण मिलता है।

प्रेमचंद की विचारधारा

  • यथार्थवादी
  • मानवतावादी
  • राष्ट्रवादी
  • प्रगतिशील
  • सामाजिक न्याय समर्थक
  • स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित
  • श्रमिक-किसान वर्ग के समर्थक

1936 में लखनऊ में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष बने। उनका भाषण इस आंदोलन का मूल घोषणापत्र माना जाता है।

निधन

लम्बी बीमारी के बाद
8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हुआ।
मृत्यु तक वे सतत् लिखते रहे।

प्रेमचंद की विरासत

आज भी

  • उनके उपन्यास पाठ्य पुस्तकों में शामिल
  • किसान, स्त्री, श्रमिक और दलित विमर्श के आधार
  • आधुनिक हिंदी कथा साहित्य के जनक
  • सामाजिक यथार्थ के सबसे बड़े लेखक

उनका लेखन समय, समाज और पीढ़ियों से आगे बढ़कर एक सार्वभौमिक मानवीय दस्तावेज बन चुका है।

निष्कर्ष

प्रेमचंद केवल साहित्यकार नहीं, बल्कि भारतीय समाज का इतिहास लिखने वाले संवेदनशील कलाकार थे।
उन्होंने आम आदमी की पीड़ा को शब्दों में बदला और साहित्य को जनसाधारण से जोड़ा।

आज भी जब हम उनके उपन्यास या कहानियाँ पढ़ते हैं, तो लगता है जैसे समाज का वह यथार्थ बिल्कुल हमारे आसपास ही घट रहा हो। यही उनकी लेखनी की आत्मा और कालजयी शक्ति है।

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