भारतीय इतिहास का आधुनिक काल 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल की शुरुआत भारतेन्दु युग से मानी जाती है। हिन्दी साहित्य के प्रमुख आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक काल की समय-सीमा 1843 ई. से 1923 ई. तक निर्धारित की है। इसी समय में हिन्दी गद्य और काव्य ने एक नई दिशा प्राप्त की।
आचार्य शुक्ल ने आधुनिक काल को ‘गद्यकाल’ कहा है, वहीं डॉ. रामकुमार वर्मा इसे ‘आधुनिक काल’, मिश्र बन्धु इसे ‘वर्तमान काल’ तथा गणपतिचन्द्र गुप्त इसे ‘आधुनिक काल’ का नाम देते हैं। इस काल में साहित्य जनजीवन के निकट आया और अनेक गद्य विधाओं का विकास हुआ। इस काल को भारतेन्दु हरिश्चंद्र के कारण विशेष पहचान मिली, जिन्होंने हिन्दी साहित्य को आधुनिकता प्रदान की।
हिन्दी गद्य का उद्भव एवं विकास
भारतेन्दु युग से पूर्व हिन्दी गद्य दो रूपों में पाया जाता था। एक ओर उर्दू-फारसी से प्रभावित खिचड़ी हिन्दी थी, जिसका प्रतिनिधित्व बाबू शिवप्रसाद सितारेहिन्द कर रहे थे, तो दूसरी ओर संस्कृतनिष्ठ हिन्दी थी, जिसका प्रचार राजा लक्ष्मण सिंह कर रहे थे। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने इन दोनों के मध्य एक संतुलित भाषा अपनाई और इसे लोकप्रिय बनाया।
प्रमुख गद्यकार एवं रचनाएँ
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लल्लू लाल – ‘प्रेम सागर’
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सदल मिश्र – ‘नासिकेतोपाख्यान’
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राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द – ‘आलसियों का कीड़ा’, ‘राजा भोज का सपना’
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मुंशी सदासुख लाल – ‘सुखसागर’ (श्रीमद्भागवत का हिन्दी अनुवाद)
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राजा लक्ष्मण सिंह – ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ का अनुवाद
आधुनिक काल : भारतेन्दु युग
भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850-1885) को हिन्दी साहित्य का जनक माना जाता है। उन्होंने हिन्दी भाषा को एक नई दिशा प्रदान की और इसे जनसाधारण की भाषा बनाया। उनकी भाषा में खड़ी बोली हिन्दी का प्रचलन था, जिसमें उर्दू और संस्कृत के शब्दों का समुचित मिश्रण था।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की प्रमुख रचनाएँ
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नाटक – ‘अंधेर नगरी’, ‘भारत दुर्दशा’, ‘नील देवी’
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काव्य – ‘वैजयंती’, ‘प्रेम मालिका’
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निबंध – ‘एक पत्र’, ‘बाल विवाह’
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पत्रकारिता – ‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन’, ‘कवि वचन सुधा’
भारतेन्दु जी ने अपने साहित्य में समाज सुधार, राष्ट्रवाद, नारी शिक्षा, जातिवाद और राजनीतिक चेतना को प्रमुखता दी। उन्होंने अंग्रेजों की नीतियों की आलोचना की और भारतीय समाज को एकजुट करने के लिए साहित्य को माध्यम बनाया।
1857 की राज्यक्रान्ति एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण
1857 की क्रान्ति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली गूँज थी। इस समय समाज में नवजागरण की लहर थी, जो अंग्रेजी शासन के खिलाफ खड़ी हुई।
नवजागरण के प्रमुख तत्त्व
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शिक्षा – अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार ने नवचेतना को बढ़ावा दिया।
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व्यापारिक नीति – अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय समाज को हिला दिया।
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साम्प्रदायिक नीति – अंग्रेजों ने हिन्दू-मुसलमानों के बीच फूट डालने का प्रयास किया।
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पाश्चात्य संस्कृति – इससे भारतीय समाज में सुधारवादी आंदोलनों की शुरुआत हुई।
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मिशनरियों का कार्य – मिशनरियों ने ईसाई धर्म के प्रचार के लिए सामाजिक कार्य किए।
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प्रेस का विकास – हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं ने जनचेतना को जाग्रत किया।
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सामाजिक कुप्रथाएँ – बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद आदि के खिलाफ सुधार आंदोलन शुरू हुए।
इन तत्त्वों ने हिन्दी साहित्य में नवजागरण को गति दी और आधुनिकता की ओर अग्रसर किया। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने समाज सुधार में योगदान दिया।
निष्कर्ष
भारतेन्दु युग हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग था, जिसमें भाषा, गद्य, काव्य, नाटक, पत्रकारिता और समाज सुधार के क्षेत्र में अपार योगदान हुआ। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने हिन्दी को जन-जन तक पहुँचाया और इसे आधुनिकता प्रदान की। उनकी साहित्यिक दृष्टि केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने इसे समाज सुधार का माध्यम बनाया। भारतेन्दु युग के साहित्यकारों ने राष्ट्र प्रेम, सामाजिक सुधार और आधुनिकता को अपने साहित्य में स्थान दिया, जिससे हिन्दी भाषा और साहित्य को नयी दिशा प्राप्त हुई।
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